gaurav varshney
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कोई गैरोँ से है गुलजार, कोई अपनोँ से रूठा है….
कई रंग हैँ यहाँ पर, मगर हर रंग अनूठा है….
झूठे जज्बातोँ का एक नकाब है, हर चेहरे पर यहाँ….
चेहरोँ की इस किताब मेँ, हर चेहरा झूठा है….
कोई दोस्ती दिखाता है, कोई आशिकी दिखाता है….
यहाँ हर शख्स जिँदगी जीने के, तजुर्बे सिखाता है….
कैसे समझाऊँ कि ये चीजेँ, कभी सिखायी नहीँ जाती….
जो खुद नहीँ सीखा, वो हमेँ बंदगी सिखाता है….
कोई लिखता है यहाँ शायरी, कोई कटाक्ष करता है….
कोई देश की, कोई समाज की यहाँ बात करता है….
करते हैँ बहुत से लोग, भ्रष्टाचार पर भी चर्चा….
पर कोई नहीँ ऐसा, जो खुद हालात से लड़ता है….
वक्त आने पर सब नकाब, खुद ब खुद खुल जाते हैँ….
झूठे चेहरोँ के सारे रंग, बारिश मेँ धुल जाते हैँ….
जो लोग यहाँ पर करते हैँ, दरियादिली की बातेँ….
जब खुद पे बात आती है, तो सब कुछ भूल जाते हैँ….
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